Sunday, June 27, 2010

एक अनोखा विवाह....

मेरे मित्र मुकेश हिसारिया (माँ वैष्णो देवी सेवा समिति), जो पटना के हैं, उन्होंने एक बीड़ा उठाया है, 51 जोड़ों सामूहिक विवाह का, वैसे जोड़े जो विवाह हेतु तैयार तो हैं पर स्थान और आर्थिक मजबूरी के कारन कर नहीं पा रहे. ऐसे जोड़ो को एक जगह देने का प्रयास किया है, मुकेश जी ने. सभी रीती - रिवाजों के साथ ही ये अनोखे विवाह आगामी 16 जुलाई 2010 को पटना के श्री कृष्ण मेमोरिअल हॉल में सम्पन्न होगा. इस आदर्श विवाह में समाज के प्रबुद्ध और सम्मानित विभूतियों के आशीर्वाद के अलावा इन जोड़ों को गृहस्थी आरम्भ करने की महत्वपूर्ण सामग्री भी उपहार स्वरुप प्रदान की जाएगी.
यदि आपकी नजर में भी कोई ऐसा जोड़ा हो जिसकी आर्थिक मजबूरी उन्हें एक नहीं होने दे रही हो, तो आप उनकी मदद कर सकते हैं. दो दिलों को मिलाने के लिए यथा शीघ्र संभव उनके सम्पूर्ण विवरण के साथ आज ही मुझे या मुकेश जी को mhissariya@gmail.com पर मेल करें.
संपर्क सूत्र: 9835093446

(नोट : सैन्करों आवेदन प्राप्त हो चुके हैं, सभी आवेदन प्राप्त करने की अंतिम तिथि के बाद सभी आवेदनों का भौतिक सत्यापन किया जायेगा, और कमिटी द्वारा पास होने पर ही उन्हें अनुमति दी जाएगी.)

- सुमित चमडिया

Saturday, June 26, 2010

स्वामी विवेकानंद का शिकागो की धर्म सभा में दिया गया भाषण

मित्रों, आज कुछ लिखने बैठा तो मेरे सामने स्वामी विवेकानंद का शिकागो की धर्म सभा मे 11 सितम्बर 1893 को दिया गया भाषण आ गया, तो सोचा किइसके कुछ मुख्य अंश को आप सबके साथ क्यों न बाटा जाय.......................


प्रस्तुत है ...........

अमेरिकी निवासी बहनों और भाइयों

जिस अपनत्व और प्यार के साथ आपने हम लोगो का स्वागत किया है, उसके फलस्वरूप मेरा ह्रदय अकथनीय हर्ष से प्रफुल्लित हो रहा है। संसार के प्राचीन ऋषिओं के नाम पर मै आपको धन्यवाद देता हूँ । तथा सब धर्मों की मतास्वरूपहिंदू धर्म के करोड़ों हिन्दुओं की ओर से भी धन्यवाद प्रकट करता हूँ।

मै उन सज्जनों के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ,जिन्होंने इस सभामंच से पूर्व से आए प्रतिनिधियों के बारे मे ये बतलाया है कि, ये दूर देश वाले पुरूष भी सर्वत्र सहिष्णुता का भाव प्रसारित करने के निमित्त यश व गौरव के अधिकारी हो सकते है।

मुझको ऐसे धर्मावलम्बी होने का गौरव है,जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सब धर्मो को मान्यता प्रदान करने की शिक्षा दी। हम लोग सब धर्मों के प्रति सहिष्णुता ही नही रखते वरन सब धर्मों की सच्ची बातो को ग्रहण भी करते हैं। मुझे आपसे यह कहते हुए गर्व होता है की मेरे धर्म की पवित्र भाषा संस्कृत मे अंग्रेजी शब्द एक्स्क्लुसन का कोई पर्यायवाची नही है। मुझे एक ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान है ,जिसने प्रथ्वी की समस्त पीड़ित शरणागत जातियों को तथा विभिन्न धर्मों के बहिष्कृत मतावलंबियों को आश्रय दिया है। मुझे यह बतलाते गर्व होता है कि, जिस वर्ष यहूदियों का पवित्र मन्दिर रोमन जाति के अत्याचार से धूल में मिला दिया गया,उस समय लाखों यहूदी शरण लेने दक्षिन भारत पहुंचे,और हमारी जाति ने उन्हें छाती से लगाकर शरण दी। ऐसे धर्म में जन्म लेने का मुझे गर्व है,जिसने इस्लाम की आंधी में उजड़ी पारसी जाति की रक्क्षा की और आज तक कर रहा है। ---------------------------साम्प्रदायिकता ,संकीर्णता और इनसे उत्पन्न भयंकर धर्म-विषयक उन्मत्ता इस सुंदर धरती पर बहुत समय तक राज्य कर चुके है। इनके घोर अत्याचार से प्रथ्वी भर गई इन्होने अनेक बार इस धरती को माने रक्त से सींचा,सभ्यताएं नष्ट कर दालिताथा समस्त जातियों को हताश कर डाला । अगर यह न होता तो मानव समाज आज कहीं अधिक उन्नत होता। पर अब उसका भी समय आ गया है,और मे आशा करता हूँ की जो घंटे आज सुबह इस सभा के सम्मान मै बजाये गए हैं,वे समस्त कट्टरताओं,तलवार के बल पर किए जाने वाले समस्त अत्याचारों की पारस्परिक कटुताओं के लिए म्रत्यु-नाद ही सिद्ध होंगे।



और इस दिन के बाद स्वामीजी के भाषणों की लगातार १७ दिवस तक चले विश्व धर्म सम्मलेन मै सबसे अधिक मांग होने लगी,तथा विश्व की नजरों मे दबे कुचले हिंदू धर्म व संस्कृति को विश्व के सबसे महान धर्म सबसे महान संस्कृति माना जाने लगा।

क्या इस भाषण में आप स्वयं को कहीं देखते हैं....

Friday, June 11, 2010

मारवाड़ी: धर्म, जाती, क्षेत्र या संस्कृति ? भाग - 2

प्रिय साथियों,
सप्रेम जय सियाराम !
हम सब मारवाड़ी हैं, ये बात सर्वविदित है, परन्तु कैसे...? राजस्थान में रहने वाले जो मारवाड़ी हैं, वो राजस्थानी हैं, हरियाणा में रहने वाले हरियाणवी और हम जैसे जो मारवाड़ी हैं, जिनके पुरखे 2-3 पीढ़ियों पहले राजस्थान, हरियाणा, मालवा आदि क्षेत्रों से आकर देश-दुनिया में बसे. आगे जाकर बिहारी, महाराशट्रीयन, गुजरती, अमेरिकी, नेपाली आदि बने. हम मारवाड़ी किसी एक क्षेत्र विशेष में तो रहते नहीं, पूरी दुनिया में फैले हुए हैं और जहाँ भी गए हैं वहां के लोगों, भाषा एवं रीती-रिवाजों को खुले दिल से अपनाया भी है. आज हमारी संख्या लगभग 9 करोड़ (एक अनुमान) है. अब यदि जाती की बात करें तो हम किसी विशेष जाती से बंधे हुए भी नहीं, अग्रवाल, ब्राह्मन, स्वर्णकार, राजपूत, पिछड़ी जाती, महेश्वरी, जाट आदि सभी जातियां हमारे यहाँ हैं. कर्म के आधार पर देखें तो हमारे लोग व्यापार, राजनीती, प्रसाशन, सरकारी नौकरियों आदि तमाम क्षेत्रों में भरे हुए हैं. धार्मिक दृष्टि से देखा जाये तो, मारवाड़ियों में हिन्दू, जैन, बौद्ध, मुस्लिम आदि सभी धर्मों को मानने वाले लोग हैं. फिर ऐसा क्या है जो हम सबसे अलग हैं और वो कौन सा तार है जो हमें एक धागे में पिरोये हुए है, वो है हमारी संस्कृति, हमारी सभ्यता हमारी अनूठी विचारधारा.

इसी से सम्बंधित है ये परिचर्चा जिसका विषय है:
मारवाड़ी: धर्म, जाती, क्षेत्र या संस्कृति

दोस्तों; इस परिचर्चा में भाग लेने के लिए आप सभी सादर आमंत्रित हैं. आपके द्वारा भेजी गयी प्रविष्टीयां समाज को नए रूप में परिभाषित करेगी.

- आपका ही....
सुमित चमडिया

Saturday, June 5, 2010

हंसगुल्ले....

नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने चंद्रमा पर पहला कदम रखा, लेकिन वहाँ पहले से दो आदमियों को मौजूद देखकर चकरा गया।

"जिस काम को अमरीका को करने में बरसों मेहनत करनी पड़ी, ये दोनों आदमी बिना किसी रॉकेट के यहाँ हमसे पहले कैसे पहुँच गए"? यह सोचता हुआ नील आर्मस्ट्रॉन्ग उनके पास गया और उनसे पूछा, "भाईसाहब आप लोग कौन हैं, जो हमसे पहले यहाँ पहुँच गए"?

उनमें से एक आदमी ने उत्तर दिया, "कैमरामेन संतोष के साथ दीपक चौरसिया.....स्टार न्यूज ब्यूरो"।