Saturday, December 20, 2008

Joke of the day...

दो लोग एक ही राह पर चल रहे थे, एक थोड़ा आगे चल रहा था और दूसरा उसके पीछे. आगे वाला सच्चा सिपाही था और तेज चल में चलता हुआ अपने दोनों हाथों को क्रमशः आगे - पीछे भांजता हुआ चल रहा था, इससे पीछे वाले की नाक में उसके हाथ से बार - बार चोट लग रही थी. आखिर दोनों में बहस हो गयी और इसमें आस - पास के लोग भी शामिल हो गए, गौर कीजिये कितनी हास्यास्पद स्थिति पैदा हो गयी,

पहला - देख कर नहीं चल सकते, देखते नहीं मेरी नाक में चोट लग रही है.

दूसरा - मैं आजाद भारत का आजाद नागरिक हूँ, कहीं भी कैसे भी हाथ - पैर हिला कर चल सकता हूँ, संविधान ने मुझे ये अधिकार दिया है.

पहला - ये बात सही है पर आपकी स्वतंत्रता वहाँ समाप्त होती है जहाँ मेरी नाक शुरू होती है।

सुमित चमडिया

मुजफ्फरपुर

मोबाइल - 9431238161

Friday, December 12, 2008

मारवाडी समाज सतत प्रगतिशील है

मारवाडी समाज ने हमेशा ही सहज रूप से सामयिक चीजों को आत्मसात किया है फ़िर चाहे वो कोई नया व्यापार हो, यन्त्र हो, पद्धति हो, विचार हो या व्यवस्था हो। शायद यही अग्रसर होने की एकमात्र वजह है की वो आगे बढ़ कर परिवर्तन का स्वागत करता रहा है. ये ब्लॉग भी उसी परिवर्तन का ही एक हिस्सा है, इसने इस बात को अक्षरसः साबित किया है, इसकी सबसे बड़ी खूबी संवाद का दोतरफा होना है, इसने पुरानी मान्यता - " वक्ता श्रोता से अधिक उन्नत व लेखक पाठक से अधिक बुद्धिमान होता है" को पूर्णतया नकार दिया है, क्योंकि यहाँ तो कोई पाठक है ही नहीं, ना ही कोई वक्ता है, ये तो एक ऐसा मंच है जिसपर सब एक ही साथ बैठे हैं और सबकी कि बातें शेष सबों तक सीधे पहुँच रही हैं. धन्यवाद गूगल ऐसा प्लेटफोर्म देने क लिए, धन्यवाद अजातशत्रु जी इससे अवगत करवाने के लिए. कहीं ना कहीं हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अनिल के.जाजोदिया जी भी इसके लिए बधाई के हक़दार हैं, ये उन्हीं के युवा विकाश कार्यशालाओं, ओजस्वी भाषणों (जिन लोगो ने उन्हें सुना है, वो जानते हैं कि उनका भाषण भी किसी कार्यशाला से कम नहीं होता) , नित नए कार्यक्रमों का ही प्रतिफल है ये कम्प्यूटर आधारित अतिआधुनिक विचार- विमर्श कि पद्धति. ये इस ब्लॉग का ही परिणाम है कि हमें नित नए लेखक मिल रहे हैं, पुराने लेखकों से परिचय हो रहा है, इसमें जहाँ शम्भू जी जैसे सधे हुए लेखक हैं तो अनिल वर्मा जी के जैसे युवा और उर्जा से भरपूर लेखक भी और फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के उम्मीदवार श्री जीतेन्द्र गुप्ता जी से परिचय भी सभी पाठकों का यहीं हुआ है. अब ये कहना की मारवाडी समाज कम्प्यूटर या इन्टरनेट के प्रति जागरूक नहीं, 5000 से अधिक लोगों द्वारा (40 - 45 दिनों में) ब्लॉग को देखा जाना इसे गलत साबित करता है.
एक बार पुनः अजातशत्रु जी को बधाई.
सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर
मोबाइल - 9431238161

Friday, December 5, 2008

क्या इन्ही लाशों पर मेरा देश महान बनेगा...?

कन्या भ्रूण हत्या रोकिये, ये समय की मांग है. जरा सोचिये तो....
बेटी नही तो बहु कहाँ से लाओगे !!!

Thursday, December 4, 2008

directory

ये एक अत्यन्त ही सरल प्रक्रिया हो सकती है। प्रत्येक शाखा से राष्ट्रीय शुल्क के साथ शाखा सदस्यों का पूर्ण विवरण माँगा जाता है (इसीके आधार पर मंच संदेश का वितरण सम्भव होता है), सदस्यों के उसी विवरण के साथ उनके व्यवसाय की जानकारी भी प्राप्त की जा सकती है (यदि प्रयास किया जाए तो इसके साथ ही उनकी वैवाहिक स्थिति की भी जानकारी हो सकती सकती है)।ये तो हुई डाटा कलेक्शन की बात, इसका प्रकाशन भी कोई बहुत परेशानी का विषय नही है, इसे बिक्री के लिए उपलब्ध करवा कर इसके प्रकाशन का खर्च प्राप्त किया जा सकता है।रही दायित्व लेने वाले व्यक्ति की बात तो राष्ट्रीय कार्यालय में कई पदाधिकारी हैं जिनके लिए इसका प्रकाशन बहुत मामूली बात है, फ़िर इस ब्लॉग पर भी कई लेखक हैं जो पत्रकारिता / प्रकाशन के क्षेत्र में विशेष रूचि रखते हैं, उनकी मदद भी ली जा सकती है, यह तो केंद्रीय नेतृत्व पर निर्भर करता है।

सुमित चमडिया

व्यावसायिक सुचना डायरेक्ट्री

एक अत्यन्त जरुरी चीज पर मैं आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहूँगा..
वो है अखिल भारतीय मारवाडी युवा मंच के सभी सदस्यों की व्यावसायिक सुचना डायरेक्ट्री
पूर्व में इसपे काम भी हुआ है और शायद कुछ अंक प्रकाशित भी हुए हैं, जिनमे से 2004 में प्रकाशित एक अंक मेरे पास भी है, परन्तु ये पुस्तिका अधूरी है, और जो सदस्य संख्या उसमे वर्णित है वो वास्तविक से काफी कम है, मेरे विचार से ये डायरेक्टरी मंच विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी और इससे हमारे अलग - अलग शाखाओं के सदस्यों के बीच एक अलग सम्बन्ध भी कायम होगा जो की मंच को एक वृहत रूप प्रदान करेगा
इसे निशुल्क या कुछ शुल्क के साथ भी सभी सदस्यों को उपलब्ध करवाया जा सकता है ।

सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर
मोबाइल - 9431238161

Wednesday, November 26, 2008

मंच एक आन्दोलन...

दोस्तों मारवाडी युवा मंच की शुरुआत एक आन्दोलन के तौर पर हुई थी और आज जबकि इसके 25 वर्ष पुरे होने को हैं तब लगता है की हमारे वरिष्ठों ने कितना संघर्ष किया होगा इस आन्दोलन को जारी रखने के लिए तब कहीं जाकर हमें ये स्वरुप प्राप्त हुआ है, अब इस आन्दोलन को जारी रखने की जवाबदेही हमारे ऊपर है इसके लिए हमें व्यक्तित्व विकाश की धारा को विशेष रूप से चालू रखना होगा, हमारे साथ आदरणीय शम्भू चौधरी जैसे विचारक उपलब्ध हैं हमें उनके लेखों का पूर्ण लाभ प्राप्त करना चाहिए । वैसे ये हमारा सौभाग्य है की व्यक्तित्व विकाश इस वक़्त के हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अनिल के।जाजोदिया जी की भी विशेष रूचि का क्षेत्र है और समय - समय पर हमें उनका स्नेहयुक्त मार्गदर्शन भी प्राप्त होता रहा है।


कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है.
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है.
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.
डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है.
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में.
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.
असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो.
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्श का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम.
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती

सुमित चमडिया

मुजफ्फरपुर

मोबाइल - 9431238161

Monday, November 24, 2008

अजन्मी बच्ची के अपनी मां से प्रश्न

इक सुबह इक कली टूटी
और मेरे आंगन मे आ गिरी
रो रही थी बिलख रही थी
मुझको चीख पुकार सुनयी पडी
मै उसके समीप गया
उसको थोडा सहला दिया
फ़िर उससे कारण पुछा
उसने ना कुछ जवाब दिया
फ़िर अचानक वो बोली
कि मै इक अजन्मी बच्ची हूं
मेरी मां ने
कोख मे मेरा कत्ल किया
इक कली को
फ़ूल बनने से पहले मसल दिया
फ़िर उसने वो प्रश्न किये
आंखो मे आंसु मेरे ला दिये
और फ़िर वो अपनी मां से कुछ सवाल करती है उन,
सवालो ने मुझको अन्दर तक झकझोर कर रख दिया
वो कहती है
कि ए मां मां ए मां
मेरी क्या गलती थी
जो तुने कोख मे मुझे मिटा दिया
जन्म तो मुझको लेने देती
क्यो पहले ही मेरा बलिदान किया
ए मां
मैने तो तुझको इतना चाहा था
कि मै ना खेली कोख मे तेरी
शांत सब्र से बैठी रहती
कहीं तुझको दर्द ना हो
तेरे दर्द की खातिर सिमटी रहती
पर क्या अहसास तेरे सब मर गये थे
क्या तुझको ना दर्द हुआ
जब तुने मारा मुझको
क्या तेरे सीने मे ना तीर गडा
ए मां
मै भी तो झांसी की रानी बन सकती थी
इन्दिरा गांधी कल्पना चावला हो सकती थी
क्यो तुने मुझ पर ना विश्वास किया
नाम को तेरे रोशन करती
क्यो पहले ही गला तुने मेरा घोट दिया
ए मां
मै भी इस दुनिया मै आना चाहती थी
तेरी गोद मे सर रखकर सोना चाहती थी
तेरे स्नेह के सागर से
कतरा दो कतरा चाहती थी
पर क्यो तुने कोख को अपनी श्मशान किया
क्यों तुने मुझको कोख मे अपनी जला दिया
खैर कोई बात नही मां
तेरी भी कोई मजबूरी होगी
जिसने जननी को हैवान किया
अब तू जीना सुख चैन से
मैने अपना कत्ल तुझे माफ़ किया
(साभार- गौरव जैन, संभलपुर)
सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर

Friday, November 21, 2008

ग़र्भ में अब मिटाई जाती है ।
भ्रूण हत्या कराई जाती है ॥
आज क्या हो गया ज़माने को ।
बोझ क्योंकर बताई जाती हैं ।।
जिसको रहमत कहा था ईश्वर की ।
अब वो जहमत बनाई जाती है ।।
बेटियाँ जब बहु बना करतीं ।
आग में क्यूँ कर जलाई जाती हैं ॥
जिसने बाबुल के घर को खुशियाँ दी ।
क्यों वो हरदम रुलाई जाती हैं ॥
जग में आने से रोकते हैं क्योंकर ।
जब की लक्ष्मी बताई जाती है ।।
कम से कम इतना तो समझो लोगों ।
क्यूँ ये संख्या घटाई जाती है ।।
इसके होने से ही हम सब होंगे ।
ये समझ क्यों न पाई जाती है ॥
आओ सब मिलके प्रण करें ।
बात हर घर सुनायी जाती है ॥

सुमित चमडिया

मुजफ्फरपुर

Monday, November 17, 2008

जागो माँ जागो

जीवन सतत परिवर्तनीय है, हमारे विचार, प्राथमिकतायें, जीवन मूल्य, मान्यताएं, धारणा या आस्था सब कुछ बदलते हैं, फ़िर हमारे कार्यक्रम क्यों हमेशा एक रहे। इसमे ठहराव नही आना चाहिए, धन्यवाद है हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अनिल के.जाजोदिया जी को जिन्होंने कुछ नया विचार दिया, कुछ सामायिक करने का मौका दिया ।
यहाँ मेरा तात्पर्य था हमारे " जागो माँ जागो " कार्यक्रम से जो की " बेटी नही तो बहु कहाँ से लाओगे " के नारे के साथ पिछले वर्षों से जाडी है, इस दिशा में मारवाडी युवा मंच परिवार ने काफी कार्य किया है, फ़िर चाहे इस दिशा में जनजागरण के लिए किया गया पोस्टर प्रचार हो (हमारे इस कार्यक्रम के पोस्टर योग गुरु बाबा रामदेव, प्रख्यात राम कथा वाचक मोरारी बापू, फ़िल्म अभिनेत्री पूनम ढिल्लों और महिला नेत्री श्रीमती सुषमा स्वराज सहित कई हस्तियों ने इन पोस्टरों का लोकार्पण किया है और सार्वजनिक मंचों से इस हेतु आह्वान किया है), हस्ताक्षर अभियान हो (अब तक लाखों शपथ पत्र पर हस्ताक्षर हो चुका है), विचार गोष्ठीयां हो या फ़िर अन्य कोई पहल हो, मंच की सभी शाखाएं एक जुट होकर इस दिशा में कार्यरत हैं । इस दिशा में इन्टरनेट पर भी प्रयास किया जा रहा है और शपथ पत्र भरवाए जा रहे हैं; देखें लिंक -
http://www.orkut.co.in/Main#Community.aspx?cmm=52520550

इस कार्यक्रम में सहयोग हेतु आपसे भी कुछ अपेक्षा की जाती है -

  1. इस कार्यक्रम से हमारे समाज और मंच को कितना फायदा मिला हैं ?
  2. इस कार्यक्रम के द्वारा हम इस सामाजिक बुराई के ऊपर कितना प्रहार कर पा रहे हैं ?
  3. हमें और कौन से तरीके से इस पर प्रहार कर सकते हैं ?

आपके विचार सादर आमंत्रित हैं:-

यहाँ भी इस सन्दर्भ का शपथ पत्र प्रस्तुत है, और आपसे अनुरोध है की सिर्फ़ उसे कॉपी और पेस्ट करके निचे अपना नाम भरते हुए पोस्ट करें:-

मैं ईश्वर की शपथ लेकर कहता / कहती हूँ की, मैं भ्रूण हत्या (अनैतिक गर्भपात, foetus killing) में प्रत्यक्ष या परोक्ष (direct or indirect) रूप से शामिल नहीं रहूँगा / रहूंगी, और यथासंभव कन्या भ्रूण संरक्षण (saving girl foetus) का प्रयास करूंगा / करूंगी।

I swear in the name of God, not to indulge myself in sex determination of the Foetus nor to ever abort any foetus for the reason that she is a female। I further swear that if any such incidence come to my knowledge, I shall object to it and try my best to stop it .

Sd/-


-सुमित चमडिया, मुजफ्फरपुर
मोबाइल - 9431238161

Wednesday, November 12, 2008

मोहल्ले में ही रहना; लोकल का मुद्दा हावी है.....

हमें श्रीमान खाज खाखरे साहब का पूर्ण समर्थन करना चाहिए, और उनके द्वारा किए गए प्रयासों को गति प्रदान करनी चाहिए, कुछ सुझाव:-

  • हमारे बच्चे यदि अपने वर्ग में द्वितीय हैं तो हमें उन्हें बताना चाहिए, पढने में कड़ी मेहनत की जरुरत नही, बस प्रथम आने वाले बच्चे को पीट दो और स्कूल से बाहर फ़ेंक दो।
  • संसद भवन दिल्ली में होने के कारण उसमे सिर्फ़ दिल्ली के लोगों को स्थान मिलना चाहिए।
  • दिल्ली में रहने वाले हमारे नेता (प्रधानमंत्री, रास्ट्रपति सहित) दिल्ली के ही होने चाहिए।
  • मुंबई में सिर्फ मराठी फिल्में ही बननी चाहिए, न की हिन्दी।
  • हरेक राज्य की सीमा पर सभी बस, ट्रेन और हवाई जहाज को रोक कर उनके कर्मचारी और यात्री बदले जाने चाहिए।
  • सभी मराठियों को, जो दुसरे राज्य या देशों में कार्यरत हैं, वापस बुलाया जाना चाहिए; क्योंकि वो वहां के स्थानीय लोगों का रोजगार छीन रहे हैं।
  • भगवान शिव, गणेश और पार्वती की पूजा मराठियों को नहीं करनी चाहिए, क्योंकि वो उत्तर (हिमालय) से सम्बन्ध रखते हैं।
  • ताजमहल देखने का अधिकार सिर्फ़ उत्तर प्रदेश के लोगों को हो, यही बात सभी दर्शनीय स्थलों पर लागू हो।
  • किसी क्षेत्र विशेष के किसानों को केन्द्र से राहत नही मिलनी चाहिए, क्योंकि जिस टैक्स से ये पैसे आये हैं वो पुरे देश का है।
  • चलिए क्षेत्रीय आतंकवादियों की मदद करें, क्योंकि वो क्षेत्र और समुदाय के लोगों के तुच्छ लाभ के लिए कमजोर और निहत्थे मासूमों की जान लेने को स्वतंत्र हैं।
  • हमें सभी बहुरास्ट्रीय कम्पनिओं को भी अपने यहाँ से हटा देना चाहिए, और अपने यहाँ से कमाने का मौका नहीं देना चाहिए। हम अपना स्वयं का महाराष्ट्र माइक्रोसॉफ्ट, महाराष्ट्र पेप्सी और महाराष्ट्र मारुती बनायेंगे।
  • मोबाइल, ईमेल, दुसरे राज्यों / देशों की फिल्में, ड्रामा आदि का प्रयोग बंद करें, जेम्स बोंड को भी मराठी में बोलना चाहिए।
  • हम दुसरे राज्यों से लाया गया भोजन नहीं खायेंगे, भले ही स्थानीय अनाज 10 गुनी कीमत पर मिले या फिर हम भूखे मर जाएँ।
  • हमें सभी स्थानीय कारखानों को भी बंद कर देना चाहिए, क्योंकि संभव है, उसमे लगने वाली मशीन किसी दुसरे राज्य / देश से लाई गयी हो।
  • हमें रेल का इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए, क्योंकि रेल मराठियों के द्वारा नहीं बनाई गयी है और रेल मंत्री भी बिहारी हैं।
  • ध्यान रखें - हमारे बच्चे पैदा होने, पालने - बढने, और जीने - मरने भी अपने मोहल्ले में ही चाहिए, क्योंकि लोकल का मुद्दा हावी है.....

जय महारास्ट्र !!!

Monday, November 10, 2008

प्रतिक्रियात्मक बहस करने की क्षमता

शम्भू जी का कहना शत प्रतिशत सही है.....

1। हममें प्रतिक्रियात्मक बहस करने की या विचार प्रकट करने की क्षमता अधिक है।
या
2। प्रतिक्रियात्मक बहस में हमें नये शब्द स्वतः मिल जाते हैं, जबकी नये सृजन में हमें शब्दों का चयन करने में काफी कठनाई होती है।

मुझे लगता है, हमें इस ब्लॉग पर और अधिक लोगों की सहभागिता के लिए हम एक प्रयोग कर सकते हैं, कोई भी प्रश्न, जिस पर हम सब की सहभागिता चाहते हैं, उसे कई उत्तरों के विकल्प में बाँट कर प्रस्तुत करने का प्रयास करें। शायद इससे हमारे पाठकों की संख्या भी बढे और उसमे से कुछ सहभागी भी बन सकें।
उत्तर विकल्प -

  1. सही है, इससे हमारी सृजनशीलता निखर कर सामने आएगी;
  2. बेकार बात है;
  3. जिन्हें नही लिखना / पढ़ना उन्हें कैसे भी प्रेरित करना सम्भव नही;
  4. इससे कम से कम हमारे पाठकों की संख्या तो बढेगी ही, और इस चर्चा को भी गति मिलेगी;
  5. छोटे उत्तर विकल्पों से हम नए लेखक / पाठक बनाने की दिशा में एक और कदम बढायेंगे।
  6. -सुमित चमडिया

धरती धोरां री !


धरती धोरां री !

आ तो सुरगां नै सरमावै,

ईं पर देव रमण नै आवै,

ईं रो जस नर नारी गावै,

धरती धोरां री !

सूरज कण कण नै चमकावै,

चन्दो इमरत रस बरसावै,

तारा निछरावल कर ज्यावै,

धरती धोरां री !

काळा बादलिया घहरावै,

बिरखा घूघरिया घमकावै,

बिजली डरती ओला खावै,

धरती धोरां री !

लुळ लुळ बाजरियो लैरावै,

मक्की झालो दे’र बुलावै,

कुदरत दोन्यूं हाथ लुटावै,

धरती धोरां री !

पंछी मधरा मधरा बोलै,

मिसरी मीठै सुर स्यूं घोलै,

झीणूं बायरियो पंपोळै,

धरती धोरां री !

नारा नागौरी हिद ताता,

मदुआ ऊंट अणूंता खाथा !

ईं रै घोड़ां री के बातां ?

धरती धोरां री !

ईं रा फल फुलड़ा मन भावण,

ईं रै धीणो आंगण आंगण,

बाजै सगळां स्यूं बड़ भागण,

धरती धोरां री !

ईं रो चित्तौड़ो गढ़ लूंठो,

ओ तो रण वीरां रो खूंटो,

ईं रे जोधाणूं नौ कूंटो,

धरती धोरां री !

आबू आभै रै परवाणै,

लूणी गंगाजी ही जाणै,

ऊभो जयसलमेर सिंवाणै,

धरती धोरां री !

ईं रो बीकाणूं गरबीलो,

ईं रो अलवर जबर हठीलो,

ईं रो अजयमेर भड़कीलो,

धरती धोरां री !

जैपर नगर्यां में पटराणी,

कोटा बूंटी कद अणजाणी ?

चम्बल कैवै आं री का’णी,

धरती धोरां री !

कोनी नांव भरतपुर छोटो,

घूम्यो सुरजमल रो घोटो,

खाई मात फिरंगी मोटोधरती धोरां री !

ईं स्यूं नहीं माळवो न्यारो,

मोबी हरियाणो है प्यारो,

मिलतो तीन्यां रो उणियारो,

धरती धोरां री !

ईडर पालनपुर है ईं रा,

सागी जामण जाया बीरा,

अै तो टुकड़ा मरू रै जी रा,

धरती धोरां री !

सोरठ बंध्यो सोरठां लारै,

भेळप सिंध आप हंकारै,

मूमल बिसर्यो हेत चितारै,

धरती धोरां री !

ईं पर तनड़ो मनड़ो वारां,

ईं पर जीवण प्राण उवारां,

ईं री धजा उडै गिगनारां,

धरती धोरां री !

ईं नै मोत्यां थाल बधावां,

ईं री धूल लिलाड़ लगावां,

ईं रो मोटो भाग सरावां,

धरती धोरां री !

ईं रै सत री आण निभावां,

ईं रै पत नै नही लजावां,

ईं नै माथो भेंट चढ़ावां,

भायड़ कोड़ां री,

धरती धोरां री !

हमें दिशा सूचक यन्त्र चाहिए....

युवा साथियों, जब हम यहाँ मंच चर्चा के लिए जुट रहे हैं तो हमें हमारी दिशा का ज्ञान भी करना होगा....

ये सही है की हमारे पास काफी शक्ति है,

  • परन्तु क्या फ़िर भी हम सही दिशा में जा रहे हैं ?
  • हमारी पिछली पीढियों की विराशत हम आगे बढ़ा पा रहे हैं ?
  • 20 साल बाद हमारे किए कार्यों के लिए हमारी पीढियों को क्या मिलने जा रहा है ?
  • हम हमारा सर्वश्रेष्ठ पा रहे हैं ?

दोस्तों आग में बड़ी उर्जा होती है जो हमारे जीवन के लिए जरुरी है, पर वही आग जब दिशा भटक जाए तो, विनाश निश्चित होता है। अब ये हमारे ऊपर निर्भर करता है की उस आग से हम भूख मिटाने का सामान बनाते हैं या हाथ जलाते हैं।

इसके लिए हमें तीन बातों पर विशेष तौर पर ध्यान केंद्रित करना होगा...

  1. हमें हमारे साथियों में पढ़ने की आदत डालनी होगी, यह सच है की हमारे पास पढने योग्य बहुत सामग्री नही पर जो भी है वो हमारे कितने सदस्यों ने पढ़ा है, क्या डॉ।डी।का।टकनैत रचित " मारवाडी समाज " जैसा महान ग्रन्थ पढना हमारे साथियों के लिए आवश्यक नहीं.....
  2. हमें कार्यशालाओं के नए और आसानी से उपलब्ध प्रशिक्षक तैयार करने होंगे ताकि इन पारस पत्थरों से छूकर हमारे युवा सोना बन सकें।
  3. हमें खुद के मंथन और अनुभव विनिमय हेतु एक विचार मंच गठित करना होगा, वैसे तो ये ब्लॉग इसकी शुरुआत कर चूका है पर इसे अभी और जमीनी स्तर पर आना है, इसमें हमरे पूर्व सदस्यों के अनुभव का भी लाभ लिया जा सकता है, और उन्हें सदा युवा मंच से जोड़े रखा जा सकता है.

लक्ष्य अभी और ऊँचा है.....
सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर
बिहार
मोबाइल - 9431238161

समाज का सर्वांगीन विकास हो

उत्कल प्रान्त की पहल अत्यन्त महत्वपूर्ण है, हमें अपनी एक इस तरह की एक वैवाहिकी साईट चाहिए ही थी।इसमे कुछ और भी महत्वपूर्ण बातें हैं, जिन पहलुओं पर ध्यान देना होगा। उसकी चर्चा हम आगे करेंगे।

दूसरी महत्वपूर्ण बात जो मैंने पहले भी कही है, हमें हमारे युवाओं को रोजगार परक जानकारी देनी होगी, हमें हमारे युवाओं को सही दिशा (शिक्षा सहित पुरे जीवन काल के लिए) का ज्ञान भी करना होगा, जिससे हमारी युवा शक्ति - राष्ट्र शक्ति में सही मायने में परिणत हो सके।

इस दिशा में आपके बहुमूल्य विचार आमंत्रित हैं....

सुमित चमडिया

मुजफ्फरपुर

बिहार

मोबाइल - 9431238161

लक्ष्य अभी और ऊँचा है.....

अपने पूर्व के लेखों में कुछ महत्वपूर्ण बातें आपके समक्ष रखी हैं, जिन्हें आपकी सुविधा के लिए यहाँ एक जगह संकलित कर रहा हूँ :
क्या मारवाडी युवा मंच मारवाडी समाज के युवाओं की प्रतिनिधि संस्था है ...?
यदि हाँ, तो हमें अतिरिक्त जनसेवा कार्यक्रमों की क्या आवश्यकता है...?

और यदि नहीं... तो संगठन के स्वरुप पर पुनः विचार करना चाहिए। हमारे समाज के द्वारा असंगठित रूप से जितना जनसेवा कार्य किया जाता है वो शायद विश्व में अनूठा हो। पुरे भारतवर्ष में आप कही भी चले जाएँ, यदि किसी धर्मशाला में ठहरे हों, किसी प्याऊ में पानी पीने को हाथ बढाया हो, किसी ट्रस्ट की अस्पताल अथवा किसी धर्म स्थल में चले जाएँ संभव है की किसी न किसी मारवाडी के द्वारा संचालित होगी, फिर यदि बिनोद रिंगानिया जी के अनुसार 75% नेत्रदाता भी मारवाडी रहे है, इन स्थितियों में क्या और जनसेवा की आवश्यकता रह जाती है..., क्या इन कार्यक्रमों को एक संगठित रूप नहीं दिया जा सकता॥ क्यों नहीं हम नेतृत्व विकास, व्यक्तित्व विकास अथवा तो समाज विकास की ओर ज्यादा ध्यान देवें। ये बात सच है की जनसेवा के कार्यक्रम हमें एक त्वरित पहचान देते हैं पर हमें कालांतर में मिलने वाले पहचान को भी ध्यान में रखना चाहिए, वो जनसेवा की पहचान तो हमें पिछली पीढियों ने ही काफी दे दी है अब हम कुछ व्यक्तित्व विकास की राह पर चलें हमें जनसेवा को साध्य नहीं साधन बनाना चाहिए।
विगत कुछ वर्षों में मंच द्वारा कुछ ऐसे कार्य किये गए हैं जो एक नई उर्जा प्रर्दशित कर रहा है, हम समय के साथ चलना सिख रहे हैं, ये अब हमारे कार्यक्रमों में स्पष्ट रूप से झलकता है, फिर चाहे वो कार्यक्रम शाखा, प्रान्त या रास्ट्र स्तर पर ही क्यों न हो। इसका सबसे बढ़िया उदाहरण युवा विकाश के कार्यक्रम, शाखाओं-प्रान्तों द्वारा अपनी साईट का निर्माण, अपनी वैवाहिकी साईट, और फिर ये ब्लॉग जिसपे हमारे संस्थापक, पूर्व, अनुभवी और नवीन सदस्य समान रूप से लिख रहे हैं।ये एक शुभ संकेत है। आइये एक नए युग का स्वागत करें।

लक्ष्य अभी और ऊँचा है....

सदस्यों और समाज का जुड़ाव मंच से कैसे हो?पुराने सदस्य जुड़े रहें और नए जुड़ने को लालायीत हों, मैंने इस पर काफी विचार किया तो ये पाया है की व्यक्ति कुछ देने नहीं बल्कि कुछ पाने की आस में संगठन से जुड़ता है, उनमें से कुछ कारण निम्नांकित हो सकते हैं;

  1. नाम, यश / कीर्ति की आशा
  2. व्यापारिक लाभ की आशा
  3. अपने व्यक्तिगत जीवन में उत्थान की आशा
  4. एक नए विशाल जनसमूह में पहचान बनाने की आशा
  5. व्यक्तित्व विकास की आशा
  6. सुरक्षा की आशा
  7. राजनैतिक महत्त्वाकांक्षा
  8. सामाजिक कार्यों में रूचि के अनुसार मंच मिलने की आशा
  9. धन लाभ की आशा

इसके अलावा भी कुछ कारण हो सकते हैं, पर हैं सभी कुछ पाने की चाह के तहत ही; क्योंकि मेरा अनुभव रहा है की गुप्तदान भी अपने कुछ खास लोगों को मालूम हो इस तरीके से दिया जाता है।नेतृत्व को बस ये देखना चाहिये की किस व्यक्ति की कौन सी चाह महत्वपूर्ण है और उसे कैसे और किस स्तर तक पूरा किया जा सकता है। तभी उसका सम्पूर्ण लाभ मंच एवं समाज को मिलेगा।
कुछ बातें जिन्हें ध्यान रखना अवश्यक है....

  • नयी युवा पीढी का जुराव मंच से कैसे हो।
  • पुराने लोग जो मंच से जुड़े हैं उन्हें सही सम्मान प्राप्त हो।
  • पीढी अंतराल को कैसे भरा जाये, इस लम्बे कल खंड में संस्थापक, पुराने, पोषक और नविन नेत्रित्व के बीच कैसे सामंजस्य बैठाया जाये।

आज की परिस्थितियों के अनुसार जो मूल्यों में बदलाव आये हैं, क्या हम उस अनुसार चल पा रहे हैं।

  • नेत्रित्व विकाश / व्यक्ति विकाश की दिशा में हम कितना बढ़ पाए हैं।

समीक्षा का समय...
पिछले वर्षों में हमें क्या करना था, क्या कर पाए और क्या बाकि रह गया... जिसे अब अगली कार्यकारिणी को हस्तांतरित करना है, कुछ नए कार्यक्रम भी लेने हैं... वैसे मेरे विचार में मंच द्वारा विगत दिनों किये गए कुछ सराहनीय कार्य...

  1. कन्या भ्रूण संरक्षण कार्यक्रम (जागो माँ जागो);
  2. राष्ट्र एकता कार्यक्रम (मुंबई हो या पटना एक देश भारत अपना);
  3. राजस्थान में आये विपदा का मुकाबला;
  4. बिहार के जल प्रलय का चट्टानी सामना;
  5. संबल (कृत्रिम अंग प्रत्यारोपण)।

इनके अलावा भी बहुत सारे कार्यक्रम हैं जो मंच द्वारा नियमित तौर पर जारी हैं, और आगामी कमिटी को भी जारी रखने चाहिए।
कुछ बाकि (अधुरा) भी रहा है-

  1. संपर्क (मंच विस्तार योजना);
  2. कार्यशाला विस्तार (व्यक्तित्व विकाश हेतु)।

यहाँ भी और बहुत से ऐसे कार्यक्रम हैं जो होने तो चाहिए थे पर उनका सही क्रियान्वयन नहीं हो पाया है, और आगामी कमिटी को करना चाहिए।
कुछ नए विचार जो अगली कमिटी द्वारा लिया जा सकता है....

  • मंच विद्यालय की शुरुआत - जहाँ अपने संस्कार नयी पीढी को दिए जा सकें, जहाँ हमारी कार्यशालाएं नियमित चल सकें, जहाँ हम कम्प्युटर की शिक्षा दे सकें और जहाँ हम ऊँचे नैतिक मूल्यों के बारे में पीढियों को बता सकें।
  • विवाह सम्बन्धी जानकारी (सदस्यों सहित पुरे समाज की);
  • रोजगार परक जानकारी (पुरे समाज के लिए)।

जब मंच का गठन हुआ था तब की परिस्थितियों और अब में बहुत फर्क है, फिर किसी भी दो पीढियों की मानसिकता भी अलग - अलग हो सकती हैं। क्या हमें अब अपनी प्राथमिकताएँ बदलनी होंगी ?

ठहरे हुआ पानी को गन्दा तालाब कहा जाता है, और बहता हुआ पानी मीठे और शीतल जल का श्रोत होता है...


लक्ष्य अभी और ऊँचा है....

विचार आमंत्रित हैं...
सुमित चमडिया

मुजफ्फरपुर

बिहार

मोबाइल - 9431238161

Sunday, November 2, 2008

आइये एक नए युग का स्वागत करें...

बिगुल बज चूका है........
विगत कुछ वर्षों में मंच द्वारा कुछ ऐसे कार्य किये गए हैं जो एक नई उर्जा प्रर्दशित कर रहा है,
हम समय के साथ चलना सिख रहे हैं, ये अब हमारे कार्यक्रमों में स्पष्ट रूप से झलकता है, फिर चाहे वो कार्यक्रम शाखा, प्रान्त या रास्ट्र स्तर पर ही क्यों न हो.
इसका सबसे बढ़िया उदाहरण युवा विकाश के कार्यक्रम, शाखाओं-प्रान्तों द्वारा अपनी साईट का निर्माण, अपनी वैवाहिकी साईट, और फिर ये ब्लॉग जिसपे हमारे संस्थापक, पूर्व, अनुभवी और नवीन सदस्य समान रूप से लिख रहे हैं.
ये एक शुभ संकेत है। आइये एक नए युग का स्वागत करें.लक्ष्य अभी और ऊँचा है....
सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर
बिहार
मोबाइल - 9431238161

Saturday, November 1, 2008

वैवाहिकी...

साईट की लिंक

http://www.upmymshaddi.com

धन्यवाद है,
श्री महेश कुमार गर्ग और श्री भवंत अग्रवाल जी को
आपकी टीम बहुत अच्छा काम कर रही है।

बधाई...!!!
श्री विष्णु कुमार अग्रवाल और मनीषा गोयनका जी को;

ये साईट युवा मंच के इतिहास में मील का पत्थर साबित होगी।
एक बार पुनः इस काम में लगी पूरी टीम को बधाई।

सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर
बिहार
मोबाइल - 9431238161

Friday, October 31, 2008

प्राथमिकताएँ...

मारवाडी युवा मंच अब पच्चीस वर्षों का जवान हो गया है, क्या हम इससे संतुष्ट हैं....क्या मंच के प्रति हमारी मान्यताएं बदली हैं...
यहाँ बार - बार व्यक्ति विकाश की बात की जा रही है, पर मेरे विचार में हमें व्यक्ति विकाश नहीं व्यक्तित्व विकाश की बातें करनी चाहिए, व्यक्ति तो स्वयं विकसित हो जायेगा.
सच है जब मंच का गठन हुआ था तब की परिस्थितियों और अब में बहुत फर्क है, फिर किसी भी दो पीढियों की मानसिकता भी अलग - अलग हो सकती हैं.
तो ये सही है की हमें अब अपनी प्राथमिकताएँ बदलनी होंगी, विचार आमंत्रित हैं....
दोस्तों; ठहरे हुआ पानी को गन्दा तालाब कहा जाता है,और बहता हुआ पानी मीठे और शीतल जल का श्रोत होता है...
लक्ष्य अभी और ऊँचा है....
सुमित चमडिया मुजफ्फरपुर बिहार मोबाइल - 9431238161

शम्भु चौधरी जी का कथन

हमें हमारा व्यक्तित्व इतना विकसित करना होगा


मंच संदेश के इस लेख को जरा ध्यान से पढें। यह बात कौन लिख रहा है? जी! ये बात जरूर मंच के किसी ऐसे व्यक्तित्व ने लिखा होगा जो मंच के किसी ऊँचे पद पर रहें होगें।

" मंच का विराट स्वरूप देखते हुए हमें हमारा व्यक्तित्व इतना विकसित करना होगा कि मंच उसमें अपना भविष्य देख सके। हमें मंच की आत्मा तक पहुंचना होगा, विभिन्न प्रांतों के मंच सदस्यों का मिजाज समझना होगा, उन्हें अपना बनाना होगा। हमें स्वयं को तपाकर उस योग्य बनाना होगा। केवल अधिकारों की बात करके अपने-अपने कुएं बनाकर, कम्पार्टमेंटल चिन्तन या चालाकियों से ऐसा न कभी हुआ है और न कभी होगा।
मंच के माध्यम से हमें हमारे समाज को आदर्श समाज बनाना होगा। हमारे समाज के इतिहास की किताब के कुछ पृष्ठ आज भी अनलिखे हैं, वे पृष्ठ हमें लिखने होंगे। एक-एक युवा में इतनी क्षमता है कि वह ऐसा कर सकता है, मगर शर्त है कि वह अतिमहात्वाकांक्षा, अहंकार, मंच से अलग अपनी पहचान और शार्टकट की संस्कृति का अविलंब त्याग करें। सरलता और विनम्रता को अपनी जीवन और कार्यशैली का मुख्य अंग बना लें। "

इनके लेख में तीन बातें हैं जो किसी व्यक्ति विशेष की तरफ इशारा करती है।
१. केवल अधिकारों की बात करके अपने-अपने कुएं बनाकर

२. कम्पार्टमेंटल चिन्तन या चालाकियों से

३. मंच से अलग अपनी पहचान और शार्टकट की संस्कृति


मंच संदेश में इस लेख का प्रकाशन खेद की बात है। - शम्भु चौधरी

दो महत्वपूर्ण बातें...!

दो और महत्वपूर्ण बातें जिनकी मंच में आवश्यकता है...

इन चीजों के आलावा भी बहुत सी बातें हैं जिनकी समाज को आवश्यकता है और ये मंच से जुड़ने का एक ठोस कारण हो सकती हैं, इनपे पूर्व में काम भी हुआ है पर और भी होना आवश्यक है...

१. विवाह सम्बन्धी जानकारी (सदस्यों सहित पुरे समाज की);

२.रोजगार परक जानकारी (पुरे समाज के लिए)।

आज अखिल भारतीय मारवाडी युवा मंच के पास सारे देश में फैला हुआ लगभग 500 शाखाओं का विशाल नेटवर्क है, हम इसका सदुपयोग कर सकते हैं इन शाखाओं को इन्टरनेट के माध्यम से आपस में भी जोड़ा जा सकता है।

सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर, बिहार
मोबाइल - 9431238161

समीक्षा...

अब समीक्षा का समय है...
पिछले वर्षों में हमें क्या करना था, क्या कर पाए और क्या बाकि रह गया... जिसे अब अगली कार्यकारिणी को हस्तांतरित करना है, कुछ नए कार्यक्रम भी लेने हैं...
वैसे मेरे विचार में मंच द्वारा विगत दिनों किये गए कुछ सराहनीय कार्य...

१. कन्या भ्रूण संरक्षण कार्यक्रम (जागो माँ जागो);
२. राष्ट्र एकता कार्यक्रम (मुंबई हो या पटना एक देश भारत अपना);
३.राजस्थान में आये विपदा का मुकाबला;
४.बिहार के जल प्रलय का चट्टानी सामना;
५. संबल (कृत्रिम अंग प्रत्यारोपण)।
इनके अलावा भी बहुत सारे कार्यक्रम हैं जो मंच द्वारा नियमित तौर पर जारी हैं, और आगामी कमिटी को भी जारी रखने चाहिए।

कुछ बाकि भी रहा है...

1.संपर्क (मंच विस्तार योजना);
२. कार्यशाला विस्तार (व्यक्तित्व विकाश हेतु).

यहाँ भी और बहुत से ऐसे कार्यक्रम हैं जो होने तो चाहिए थे पर उनका सही क्रियान्वयन नहीं हो पाया है, और आगामी कमिटी को करना चाहिए।

एक नया विचार जो अगली कमिटी द्वारा लिया जा सकता है....

एक अहम् सवाल क्या मंच को अपना स्वयं का विद्यालय खोलना चाहिए, एक ऐसा विद्यालय जहाँ अपने संस्कार नयी पीढी को दिए जा सकें, जहाँ हमारी कार्यशालाएं नियमित चल सकें, जहाँ हम कम्प्युटर की शिक्षा दे सकें और जहाँ हम ऊँचे नैतिक मूल्यों के बारे में पीढियों को बता सकें।
जारी...
सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर, बिहार
मोबाइल - 9431238161

क्या मारवाडी युवा मंच मारवाडी समाज के युवाओं की प्रतिनिधि संस्था है ...?

यदि हाँ.. तो हमें अतिरिक्त जनसेवा कार्यक्रमों की क्या आवश्यकता है...?
और यदि नहीं... तो संगठन के स्वरुप पर पुनः विचार करना चाहिए। मैं यहाँ बिनोद रिंगानिया जी और रवि अजितसरिया जी की बातों से सर्वथा सहमत हूँ, हमारे समाज के द्वारा असंगठित रूप से जितना जनसेवा कार्य किया जाता है वो शायद विश्व में अनूठा हो. पुरे भारतवर्ष में आप कही भी चले जाएँ, यदि किसी धर्मशाला में ठहरे हों, किसी प्याऊ में पानी पीने को हाथ बढाया हो, किसी ट्रस्ट की अस्पताल अथवा किसी धर्म स्थल में चले जाएँ संभव है की किसी न किसी मारवाडी के द्वारा संचालित होगी, फिर यदि बिनोद रिंगानिया जी की बात मन जाये तो ७५% नेत्रदाता भी मारवाडी रहे है, इन स्थितियों में क्या और जनसेवा की आवश्यकता रह जाती है..., क्या इन कार्यक्रमों को एक संगठित रूप नहीं दिया जा सकता.. क्यों नहीं हम नेतृत्व विकास, व्यक्तित्व विकास अथवा तो समाज विकास की ओर ज्यादा ध्यान देवें. ये बात सच है की जनसेवा के कार्यक्रम हमें एक त्वरित पहचान देते हैं पर हमें कालांतर में मिलने वाले पहचान को भी ध्यान में रखना चाहिए, वो जनसेवा की पहचान तो हमें पिछली पीढियों ने ही काफी दे दी है अब हम कुछ व्यक्तित्व विकास की राह पर चलें... रवि जी के ही अनुसार हम कोई सिर्फ पानी पिलाने वाले संगठन का हिस्सा नहीं हैं, और फिर यदि लाखों करोर बजट वाली सरकार सबको पानी नहीं पिला सकती तो क्या हम...?हमें जनसेवा को साध्य नहीं साधन बनाना चाहिए. लक्ष्य अभी और ऊँचा है....
जारी....
सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर
बिहार
मोबाइल - 9431238161

सदस्यों का जुड़ाव...

प्रश्न: सदस्यों और समाज का जुड़ाव मंच से कैसे हो?
पुराने सदस्य जुड़े रहें और नए जुड़ने को लालायीत हों...श्री राजकुमार शर्मा जी ने भी इसी प्रकार का प्रश्न उठाया है...
उत्तर:
मैंने इस पर काफी विचार किया तो ये पाया है की व्यक्ति कुछ देने नहीं बल्कि कुछ पाने की आस में संगठन से जुड़ता है, उनमें से कुछ कारण निम्नांकित हो सकते हैं;

1. नाम, यश / कीर्ति की आशा

२.व्यापारिक लाभ की आशा

3.अपने व्यक्तिगत जीवन में उत्थान की आशा

4.एक नए विशाल जनसमूह में पहचान बनाने की आशा

5.व्यक्तित्व विकास की आशा

6.सुरक्षा की आशा

7.राजनैतिक महत्त्वाकांक्षा

8.सामाजिक कार्यों में रूचि के अनुसार मंच मिलने की आशा

9.धन लाभ की आशा

इसके अलावा भी कुछ कारण हो सकते हैं, पर हैं सभी कुछ पाने की चाह के तहत ही॥ क्योंकि मेरा अनुभव रहा है की गुप्तदान भी अपने कुछ खास लोगों को मालूम हो इस तरीके से दिया जाता है।नेतृत्व को बस ये देखना चाहिये की किस व्यक्ति की कौन सी चाह महत्वपूर्ण है और उसे कैसे और किस स्तर तक पूरा किया जा सकता है। तभी उसका सम्पूर्ण लाभ मंच एवं समाज को मिलेगा।

-सुमित चमड़िया
... जारी...

मंच चर्चा....

वैसे सकारात्मक परिचर्चा के क्रम में कुछ महत्वपूर्ण बातें ध्यान में रखने की जरुरत है:-

१. नयी युवा पीढी का जुराव मंच से कैसे हो।

२. पुराने लोग जो मंच से जुड़े हैं उन्हें सही सम्मान प्राप्त हो।

३. पीढी अंतराल को कैसे भरा जाये, इस लम्बे कल खंड में संस्थापक, पुराने, पोषक और नविन नेत्रित्व के बीच कैसे सामंजस्य बैठाया जाये।

४. आज की परिस्थितियों के अनुसार जो मूल्यों में बदलाव आये हैं, क्या हम उस अनुसार चल पा रहे हैं।

५. नेत्रित्व विकाश / व्यक्ति विकाश की दिशा में हम कितना बढ़ पाए हैं।

आगे भी जारी.....

सुमित चमडिया

मुजफ्फरपुर, बिहार

Wednesday, October 22, 2008

अच्छा प्रयास है...

अच्छा प्रयास है... धन्यवाद रवि अजितसरिया जी मुझे इससे अवगत करवाने के लिए.. आपने आग्रह किया है कुछ लिखने के लिए, परन्तु मुझे कुछ वक़्त चाहिए बड़ों के वाद - विवाद का तरीका सिखने के लिए, यहाँ से मुझे और भी बहुत कुछ सीखना है.. क्योंकि अब तक अपने 12 वर्षों के मारवाडी युवा मंच के जीवन में मैंने जो सिखा है वो सकारात्मकता की ओर इशारा करता है, हाँ पुरानी गलत सही बातो से भी हमें सीखना है, पर वो "सिंहावलोकन" की तरह होना चाहिए... पर क्या ये सिंह आचरण है...?

Tuesday, July 15, 2008

It is a voluntary youth organization, membership of which is open to all persons in the age bracket of 18 to 40 and having adopted the life style, language and culture of Rajasthan, Hariyana, Malwa in Madhya Pradesh or nearby regions, who themselves or whose fore-fathers living whether in India or any other part of world identify themselves as Marwari.Established on 10th October, 1977 at guwahati in the state of Assam at the local level, it expanded to 23 towns/cities of North-Eastern States by the year 1983. It got the National outlook in its First National Convention held at Guwahati on 18th, 19th & 20th January, 1985 in a very short span of less than eight years. Today, It has more the 495 branches throughout the country with its Headquarter at Delhi.
Visit: www.mayum.com