दो लोग एक ही राह पर चल रहे थे, एक थोड़ा आगे चल रहा था और दूसरा उसके पीछे. आगे वाला सच्चा सिपाही था और तेज चल में चलता हुआ अपने दोनों हाथों को क्रमशः आगे - पीछे भांजता हुआ चल रहा था, इससे पीछे वाले की नाक में उसके हाथ से बार - बार चोट लग रही थी. आखिर दोनों में बहस हो गयी और इसमें आस - पास के लोग भी शामिल हो गए, गौर कीजिये कितनी हास्यास्पद स्थिति पैदा हो गयी,
पहला - देख कर नहीं चल सकते, देखते नहीं मेरी नाक में चोट लग रही है.
दूसरा - मैं आजाद भारत का आजाद नागरिक हूँ, कहीं भी कैसे भी हाथ - पैर हिला कर चल सकता हूँ, संविधान ने मुझे ये अधिकार दिया है.
पहला - ये बात सही है पर आपकी स्वतंत्रता वहाँ समाप्त होती है जहाँ मेरी नाक शुरू होती है।
सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर
मोबाइल - 9431238161

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