Saturday, January 24, 2009
हमारे अभिभावक सदस्य
आज यह एक प्रासंगिक प्रश्न है. हमारे अन्दर की उर्जा को एक दिशा की आवश्यकता है जो अनुभव से ही मिल सकती है और अनुभव हमारे इन अभिभावक सदस्यों के पास है, जो हम उनसे प्राप्त कर सकते हैं।उनका सहयोग पाने के लिए हमें कई कदम उठाने होंगे
१. उचित सम्मान देना होगा।
२. उनका लगातार साथ पाने के लिए हम एक संरक्षक मंडल का गठन कर सकते हैं, इस मंडल का काम कठिन परिस्थिति में शाखा को अपने अनुभव से मार्गदर्शन देना होगा और समाज की वरिष्ठ संस्थाओं और युवा मंच के बिच सामंजस्य स्थापित करना होगा.कई और कदम हैं जिनकी चर्चा हम आगे करेंगे.
-सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर
9431238161
Saturday, January 17, 2009
मैं मारवाडी हूँ !!!
श्री भवंत अग्रवाल और श्री राजेश जैन ने एक बड़ा ही महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया है, वास्तव में हमारी उम्र के युवाओं में इस प्रकार की भ्रांतियां हुई हैं, जिनका समाधान आवश्यक है. मैं स्वयं भी भ्रम की स्थिति में था की मै तो शेखावाटी (राजस्थान) का हूँ और महाराजा अग्रशेन जी का वंशज हूँ, इस नाते अग्रवाल हूँ और राजस्थानी हूँ पर मारवाडी....? आखिर जानकारियां इकट्ठी करने की कोशिश की और जो पाया उसे यहाँ आपसे बाँटना चाहता हूँ;
हमारे पूर्वज बेहतर जीवन और रोजगार की तलाश की में शताब्दियों पूर्व राजस्थान, हरियाणा से निकल कर देश-विदेश में स्थानांतरित हुए, इनमे सबसे पहले निकलने वाले मारवाड़ (राजस्थान का एक क्षेत्र) के लोग थे, जो अपनी कर्मठता, कार्य और व्यवहार कुशलता, विपरीत परिस्थियों में भी सामान्य जीवन यापन की कला और गजब की व्यापारिक निति एवं विश्वसनीयता के कारण काफी प्रचलित हुए. इनकी वेश-भूषा, भाषा और खान - पान भी विशेष आकर्षण का केन्द्र होते थे. इनका एक और विशेष गुण ये था की ये जहाँ भी ये रहते थे वहाँ के स्थानीय लोगों के दुःख-दर्द को अपना समझते थे. अपने इन्ही गुणों के चलते ये लोग अपना सिक्का ज़माने में सफल हुए और चूँकि इनमे अधिकांश मारवाड़ से आए थे इसलिए मारवाडी कहलाये. बाद में इनलोगों ने अपने व्यापार या अन्य कार्यों में सहयोग के लिए अपने ईष्ट - मित्रों, रिश्तेदारों परिचितों को बुलाना शुरू कर दिया, जो पुरे राजस्थान या समीपवर्ती इलाकों (अब के राजस्थान, हरियाणा और मालवा आदि) के थे. आपसी समानता (गुणों और व्यव्हार में) और समन्वय के कारण ये लोग भी मारवाडी कहलाये जाने लगे. आज विश्व में ऐसे लगभग 9 करोड़ (एक अनुमान) मारवाडी हैं, जो अपने - अपने क्षेत्रों में अव्वल हैं और आज भी अपने प्रारंभिक गुणों, कर्मठता, कार्य और व्यवहार कुशलता, विपरीत परिस्थियों में भी सामान्य जीवन यापन की कला व्यापारिक निति एवं विश्वसनीयता के साथ परोपकार की भावना को अपनाए हुए हैं. ये लोग सिर्फ़ मारवाडी हैं ना की ब्राह्मण, क्षत्रिय, अग्रवाल या कुछ और, ना ही ये किसी क्षेत्र विशेष के कहे जाते हैं।
मुझे पूरी उम्मीद है की इस लेख से आपकी जिज्ञाषा शांत होगी.
(नोट - इस सन्दर्भ का एक महत्वपूर्ण शोध ग्रन्थ डॉ.श्री टी.के.टकनैत द्वारा रचित "मारवाडी समाज" है, जिसका अध्ययन करके और भी सटीक जानकारी प्राप्त की जा सकती है)
- सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर
9431238161
Tuesday, January 13, 2009
ये रेडियो मायूम है...!!!
साथियों गत 8 जनवरी 2009 अपने अनुभवों को बांटने के उद्धेस्य से एक प्रश्न मंच गठित करने का प्रयास किया गया था। आपका कोटिशः धन्यवाद की आपने उसपर भरपूर स्नेह दिया है और अपने बहुमूल्य विचारों से ब्लॉग के सदस्यों को अवगत करवाया। यहाँ आपके सभी विचारों को एक साथ करने का प्रयास कर रहा हूँ।
पूछे गए प्रश्न थे :-
प्रश्न 1 - हम क्या करें की समाज के बेहतर लोग स्वतः मंच की सदस्यता लेने की ओर आकर्षित हों ?
(8 जनवरी 2009 को सुमित चमडिया द्वारा)
इस प्रश्न के उत्तर में हमें अब तक कई जवाब प्राप्त हुए हैं; जिनका सार-संक्षेप है;
(उत्तरदाता - सर्वश्री ओमप्रकाश अगरवाला, अमित गोयल, अनिल वर्मा, प्रमोद कु।जैन, निश्चल सिंघल एवं शम्भू चौधरी)
1। शाखा स्तर पर ऐसे लोगो की सूचि बना कर उनसे संपर्क करना अवाम मंच के अखिल भारतीय स्वरुप के बारे में उन्हें अवगत करना.
2। कार्यक्रमों में उन्हें आमंत्रित करना.
3। कार्यक्रमों और सभाओं में समयानुवार्तिता का ध्यान रखा जाए एवं लंबे भाषणों से बचा जाए.
4। मंच के नए और कर्मठ कार्यकर्ताओं को सब के सामने पुरस्कृत किया जाए, ताकि उनमे नए उत्साह का संचार हो. विभिन्न कार्यक्रमों में अपने शाखा के पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं एवं कार्यक्रम संयोजकों को जरुर पुरस्कृत करें.
5। मंच नेतृत्व कार्यक्रम की विफलता पर किसी पर दोषारोपण न कर स्वयं नैतिक जिम्मेवारी ले और कार्यकर्ताओं में उत्साह वर्धन करने का प्रयास कर उन्हें ये विश्वास दिलाये की अगला कार्यक्रम सफल होगा.
6। अतिथियों को मंच पर लाना, उनका सम्मान करना, कार्यक्रमों में कार्यकर्ताओं को अधिक से अधिक शामिल करना चाहिए.
7। मंच दर्शन का समाज में विस्तार करना होगा, हम अभी भी केन्द्रित पैठ बना पाए हैं और जब तक इसका विकेन्द्रीकरण नही होगा तब लोग स्वतः ही मंच कि सदस्यता लेने के लिए आकर्षित नही हो सकते हैं .
8। मंच के सभी सदस्य एक श्रेणी और एक ही नजरों से देखें जाने चाहिये.
(प्रश्न-1 हेतु आपके विचार \ अनुभव इस कृपया यहाँ पोस्ट करें)
Tuesday, January 6, 2009
रांची अधिवेशन में बहुत सारी बातों के बीच एक अच्छी चीज प्रख्यात अभिनेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री शत्रुघ्न सिन्हा का भाषण भी है, अपने भाषण में बहुत सी राजनैतिक बातों के आलावा उन्होंने कुछ ग्रहण करने योग्य बातें भी कही, जिसमे से एक भाषा प्रेम पर उनके विचार हैं। उन्ही के शब्दों में ;
भाषा तीन तरह की होती है, और तीनो ही व्यक्ति के लिए आवश्यक है
- मातृभाषा - संस्कार के लिए ,
- राष्ट्रभाषा - व्यवहार के लिए, एवं
- विदेशी भाषा - व्यापार के लिए
उपरोक्त दो और तीन तो हम हर जगह प्रयोग कर ही रहे हैं, और पहली का प्रयोग घर में. यदि ब्लॉग के लेखकों का मन बने तो यहाँ एक नया प्रयोग किया जा सकता है. "आज का विचार" के नाम से लिंक बना कर उसमे प्रतिदिन एक पोस्ट (छोटा या बड़ा, दोहा- कविता, बुजुर्गों के विचार जैसा कुछ भी) डाला जाए जो हमारी मातृभाषा में हो और विभिन्न लेखकों द्वारा डाला जाए।
सधन्यवाद
-सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर
मोबाइल - 9431238161
Saturday, January 3, 2009
मंच के दीवाने और दो तरफा संवाद...
हेलो... सुमित, कहाँ हो? मैं ट्रेड - एक्स के बाहर हूँ, वहीँ आ जाओ.
फिर तो ये सिलसिला ही चल पड़ा, कभी ओमप्रकाश जी, रवि जी तो कभी निश्चल जी, कभी अमित गोयल, रमेश जी, भवंत और महेश जी कितनो का नाम लिखा जाये... इसके बाद शुरू हुआ परिचय का दौर आप हैं शम्भू चौधरी, आप विनोद रिंगानिया, विकाश जी और लोग जुरते ही चले गए.... कभी इनसे मिले नहीं, कभी देखा नहीं, न आवाज सुनी (अधिकतर की), एक चीज जो सब में थी- मंच की दीवानगी, हाँ बस इन्टरनेट पर मुलाकात हुआ करती है, ऐसा लगता था की हम अरसे से एक दुसरे को जानते हैं, एक दुसरे के साथ ही रहते आये हैं. ये आनंद का अतीरेक था. एक जीता - जगता उदाहरण था संवाद के दो तरफा होने का.
क्या कहा; दो तरफा संवाद...?
ये क्या होता है.... संवाद तो संवाद है, फिर ये दो तरफा....?
आज सारे विश्व में संचार क्रांति आ चुकी है, तो मंच और वृहत तौर पर समाज इससे अछूता कैसे रह सकता है और मारवाडी समाज हमेशा इसलिए अग्रसर रहा है क्योंकि इसने आगे बढ़कर परिवर्तन को स्वीकार किया है। जी हाँ.. समाचार पत्र, डाक, कूरियर, टेलीफोन, मोबाइल, एस।एम।एस., इन्टरनेट हाँ और अब ये ब्लॉग. अरे ये क्या बातों - बातों में ये पता ही नहीं चला की आप भी तो दो तरफा संवाद को स्वीकार कर चुके हैं तभी तो आप इस ब्लॉग पर हैं और मेरी इस बात के बाद अपना विचार भी रख सकते हैं, यानि मेरी बात आप तक पहुंची और आप सबकी बात मुझ तक, हमेशा सेकेंडों में...
जारी....
सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर
9431238161
Friday, January 2, 2009
मंच का कारवां और हम युवा साथी...
-सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर
9431238161
क्या कहते हैं मंच के सितारे
ग्रह दशा - मारवाडी युवा मंच एवं श्री जीतेन्द्र गुप्ता
श्री गुप्ता वर्तमान में ऑटोमोबाइल के व्यवसाय से जुड़े हैं और उत्कल प्रदेश में बहुचर्चित हस्ती बन कर पिछले दिनों अखिल भारतीय मारवाडी युवा मंच के नवम राष्ट्रीय अधिवेशन (कारवां - 2008) में मंच के सर्वोच्च पद राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में 28 दिसम्बर 2008 को शपथ ग्रहण किये हैं। इनके ज्योतिषीय सितारे परिलक्षित कराते हैं की जिस प्रकार पूर्व के वर्षों में उत्कल प्रदेश के प्रांतीय अध्यक्ष के रूप में इन्होने 58 शाखा से 120 के करीब शाखाओं का विस्तारीकरण कर मंच को बुलंदी प्रदान की है उसी प्रकार मंच के रजत जयंती वर्ष (20 जनवरी 2009 - 2010) में इनके नेतृत्व में मंच परिवार के पांचों स्तम्भ जनसेवा, समाज सुधार, व्यक्ति विकाश, सामाजिक सम्मान एवं आत्म सुरक्षा, राष्ट्रीय विकाश एवं एकता को एक अच्छी दिशा मिलेगी। वहीँ विशेष रूप से इस वर्ष में सामाजिक सम्मान एवं आत्म सुरक्षा और जनसेवा जैसे क्षेत्रों में अधिक कार्य होंगे, ऐसा सितारे परिलक्षित करते हैं।वहीँ इनके सितारे यह भी कहते हैं की इन्हें अपने व्यवसाय पर विशेष दृष्टि रखनी चाहिए और अपनी सफल व्यवसायी एवं समाजसेवी की प्रतिष्ठापित छवि कायम रखने हेतु नित्य हनुमान आराधना तथा प्रत्येक पूर्णिमा को चन्द्र दर्शन के बाद रात्रि में " ॐ नमो नारायणाय " के मंत्र का जाप 15 मिनट तक करना चाहिए, इससे इनके सभी कार्य सिद्ध हो सकेंगे.वैसे मंच के स्थापना दिवस 20 जनवरी 1985 और श्री जीतेन्द्र गुप्ता के राष्टीय अध्यक्ष पद पर शपथ ग्रहण दिवस 28 दिसम्बर 2008 के सितारों को देखने से यह लगता है की यह वर्ष काफी संघर्ष पूर्ण रहेगा, विभिन्न मुद्दों पर विरोधाभास के बावजूद भी ये अपनी और मंच की मजबूत छवि बनाने में वर्ष के मध्य तक सफलता की ओर बढ़ेंगे। अपने कार्यों से इनका Distinction Marks (75 %) पाना तय माना जा सकता है.
साभार:-आचार्य श्री विष्णु शर्मा (ज्योतिषी)
अध्यक्ष - ज्योतिष अनुसन्धान केंद्र, मुजफ्फरपुर
सदस्य - मारवाडी युवा मंच मुजफ्फरपुर
मोबाइल - ९८३५०६०१९९
जीतेन्द्र गुप्ता जी के जन्म और मंच के स्थापना का आधार लेते हुए इस फलदशा की गणना की गयी है।
-सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर
9431238161
अब मैं अपनी मुख्य बात पर आता हूँ वैसे तो कई सारे कार्यक्रम हैं जो नवनिर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा लिए जायेंगे और कार्यक्रमों का चुनाव उनके विवेक पर निर्भर करता है पर मेरी नजर में कुछ विशेष कार्यक्रम हैं जो मैं उन तक पहुँचाना चाहता हूँ:-
1. सभी शाखाओं का कम्प्यूटरीकरण - देश की सभी 550 शाखाओं को इस प्रयास से एक साथ जोर जा सकता है. इससे संचार माध्यम को भी दुरुस्त किया जा सकता है.
2. कम्प्यूटर साक्षरता अभियान - सभी सदस्यों के लिए।
3. वैवाहिक सूचना केन्द्र - इन्टरनेट के माध्यम से ऑनलाइन और शाखा नेटवर्क से ऑफलाइन, इसमे सभी सदस्यों सहित पुरे मारवाडी समाज के युवाओं की जानकारी हो.
4. रोजगार सूचना केन्द्र - वैवाहिक सूचना केन्द्र के आधार पर ही इसका भी निर्माण हो.
5.व्यक्तित्व विकाश की कार्यशालाओं का आयोजन - इसके लिए मंडलीय स्तर पर कमिटी गठित की जा सकती है ताकि इसे सभी शाखाओं तक पहुँचाया जा सके।
6. अनुसाशन समिति का निर्माण - ताकि एक स्वस्थ माहौल का निर्माण हो.
7. हमारे साहित्य और हमारे लेखकों को विस्तार - क्योंकि ये चीजें ही इतिहास का निर्माण करेंगी.
8. शाखाओं और प्रान्त एवं राष्ट्र के पदाधिकारियों में बेहतर समन्वय - इनमे आपसी समन्वय के लिए कुछ खास प्रयास वांछित हैं.
9. दो तरफा संवाद हेतु पहल - समय की मांग Dialog की है, Monolog से Dialog की ओर चलने की कोशिश जरुरी है.
- सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर
9431238161