Friday, October 31, 2008
प्राथमिकताएँ...
यहाँ बार - बार व्यक्ति विकाश की बात की जा रही है, पर मेरे विचार में हमें व्यक्ति विकाश नहीं व्यक्तित्व विकाश की बातें करनी चाहिए, व्यक्ति तो स्वयं विकसित हो जायेगा.
सच है जब मंच का गठन हुआ था तब की परिस्थितियों और अब में बहुत फर्क है, फिर किसी भी दो पीढियों की मानसिकता भी अलग - अलग हो सकती हैं.
तो ये सही है की हमें अब अपनी प्राथमिकताएँ बदलनी होंगी, विचार आमंत्रित हैं....
दोस्तों; ठहरे हुआ पानी को गन्दा तालाब कहा जाता है,और बहता हुआ पानी मीठे और शीतल जल का श्रोत होता है...
लक्ष्य अभी और ऊँचा है....
सुमित चमडिया मुजफ्फरपुर बिहार मोबाइल - 9431238161
शम्भु चौधरी जी का कथन
हमें हमारा व्यक्तित्व इतना विकसित करना होगा
मंच संदेश के इस लेख को जरा ध्यान से पढें। यह बात कौन लिख रहा है? जी! ये बात जरूर मंच के किसी ऐसे व्यक्तित्व ने लिखा होगा जो मंच के किसी ऊँचे पद पर रहें होगें।
" मंच का विराट स्वरूप देखते हुए हमें हमारा व्यक्तित्व इतना विकसित करना होगा कि मंच उसमें अपना भविष्य देख सके। हमें मंच की आत्मा तक पहुंचना होगा, विभिन्न प्रांतों के मंच सदस्यों का मिजाज समझना होगा, उन्हें अपना बनाना होगा। हमें स्वयं को तपाकर उस योग्य बनाना होगा। केवल अधिकारों की बात करके अपने-अपने कुएं बनाकर, कम्पार्टमेंटल चिन्तन या चालाकियों से ऐसा न कभी हुआ है और न कभी होगा।
मंच के माध्यम से हमें हमारे समाज को आदर्श समाज बनाना होगा। हमारे समाज के इतिहास की किताब के कुछ पृष्ठ आज भी अनलिखे हैं, वे पृष्ठ हमें लिखने होंगे। एक-एक युवा में इतनी क्षमता है कि वह ऐसा कर सकता है, मगर शर्त है कि वह अतिमहात्वाकांक्षा, अहंकार, मंच से अलग अपनी पहचान और शार्टकट की संस्कृति का अविलंब त्याग करें। सरलता और विनम्रता को अपनी जीवन और कार्यशैली का मुख्य अंग बना लें। "
इनके लेख में तीन बातें हैं जो किसी व्यक्ति विशेष की तरफ इशारा करती है।
१. केवल अधिकारों की बात करके अपने-अपने कुएं बनाकर
२. कम्पार्टमेंटल चिन्तन या चालाकियों से
३. मंच से अलग अपनी पहचान और शार्टकट की संस्कृति
मंच संदेश में इस लेख का प्रकाशन खेद की बात है। - शम्भु चौधरी
दो महत्वपूर्ण बातें...!
इन चीजों के आलावा भी बहुत सी बातें हैं जिनकी समाज को आवश्यकता है और ये मंच से जुड़ने का एक ठोस कारण हो सकती हैं, इनपे पूर्व में काम भी हुआ है पर और भी होना आवश्यक है...
१. विवाह सम्बन्धी जानकारी (सदस्यों सहित पुरे समाज की);
२.रोजगार परक जानकारी (पुरे समाज के लिए)।
आज अखिल भारतीय मारवाडी युवा मंच के पास सारे देश में फैला हुआ लगभग 500 शाखाओं का विशाल नेटवर्क है, हम इसका सदुपयोग कर सकते हैं इन शाखाओं को इन्टरनेट के माध्यम से आपस में भी जोड़ा जा सकता है।
सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर, बिहार
मोबाइल - 9431238161
समीक्षा...
पिछले वर्षों में हमें क्या करना था, क्या कर पाए और क्या बाकि रह गया... जिसे अब अगली कार्यकारिणी को हस्तांतरित करना है, कुछ नए कार्यक्रम भी लेने हैं...
वैसे मेरे विचार में मंच द्वारा विगत दिनों किये गए कुछ सराहनीय कार्य...
१. कन्या भ्रूण संरक्षण कार्यक्रम (जागो माँ जागो);
२. राष्ट्र एकता कार्यक्रम (मुंबई हो या पटना एक देश भारत अपना);
३.राजस्थान में आये विपदा का मुकाबला;
४.बिहार के जल प्रलय का चट्टानी सामना;
५. संबल (कृत्रिम अंग प्रत्यारोपण)।
इनके अलावा भी बहुत सारे कार्यक्रम हैं जो मंच द्वारा नियमित तौर पर जारी हैं, और आगामी कमिटी को भी जारी रखने चाहिए।
कुछ बाकि भी रहा है...
1.संपर्क (मंच विस्तार योजना);
२. कार्यशाला विस्तार (व्यक्तित्व विकाश हेतु).
यहाँ भी और बहुत से ऐसे कार्यक्रम हैं जो होने तो चाहिए थे पर उनका सही क्रियान्वयन नहीं हो पाया है, और आगामी कमिटी को करना चाहिए।
एक नया विचार जो अगली कमिटी द्वारा लिया जा सकता है....
एक अहम् सवाल क्या मंच को अपना स्वयं का विद्यालय खोलना चाहिए, एक ऐसा विद्यालय जहाँ अपने संस्कार नयी पीढी को दिए जा सकें, जहाँ हमारी कार्यशालाएं नियमित चल सकें, जहाँ हम कम्प्युटर की शिक्षा दे सकें और जहाँ हम ऊँचे नैतिक मूल्यों के बारे में पीढियों को बता सकें।
जारी...
सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर, बिहार
मोबाइल - 9431238161
क्या मारवाडी युवा मंच मारवाडी समाज के युवाओं की प्रतिनिधि संस्था है ...?
और यदि नहीं... तो संगठन के स्वरुप पर पुनः विचार करना चाहिए। मैं यहाँ बिनोद रिंगानिया जी और रवि अजितसरिया जी की बातों से सर्वथा सहमत हूँ, हमारे समाज के द्वारा असंगठित रूप से जितना जनसेवा कार्य किया जाता है वो शायद विश्व में अनूठा हो. पुरे भारतवर्ष में आप कही भी चले जाएँ, यदि किसी धर्मशाला में ठहरे हों, किसी प्याऊ में पानी पीने को हाथ बढाया हो, किसी ट्रस्ट की अस्पताल अथवा किसी धर्म स्थल में चले जाएँ संभव है की किसी न किसी मारवाडी के द्वारा संचालित होगी, फिर यदि बिनोद रिंगानिया जी की बात मन जाये तो ७५% नेत्रदाता भी मारवाडी रहे है, इन स्थितियों में क्या और जनसेवा की आवश्यकता रह जाती है..., क्या इन कार्यक्रमों को एक संगठित रूप नहीं दिया जा सकता.. क्यों नहीं हम नेतृत्व विकास, व्यक्तित्व विकास अथवा तो समाज विकास की ओर ज्यादा ध्यान देवें. ये बात सच है की जनसेवा के कार्यक्रम हमें एक त्वरित पहचान देते हैं पर हमें कालांतर में मिलने वाले पहचान को भी ध्यान में रखना चाहिए, वो जनसेवा की पहचान तो हमें पिछली पीढियों ने ही काफी दे दी है अब हम कुछ व्यक्तित्व विकास की राह पर चलें... रवि जी के ही अनुसार हम कोई सिर्फ पानी पिलाने वाले संगठन का हिस्सा नहीं हैं, और फिर यदि लाखों करोर बजट वाली सरकार सबको पानी नहीं पिला सकती तो क्या हम...?हमें जनसेवा को साध्य नहीं साधन बनाना चाहिए. लक्ष्य अभी और ऊँचा है....
जारी....
सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर
बिहार
मोबाइल - 9431238161
सदस्यों का जुड़ाव...
पुराने सदस्य जुड़े रहें और नए जुड़ने को लालायीत हों...श्री राजकुमार शर्मा जी ने भी इसी प्रकार का प्रश्न उठाया है...
उत्तर:
मैंने इस पर काफी विचार किया तो ये पाया है की व्यक्ति कुछ देने नहीं बल्कि कुछ पाने की आस में संगठन से जुड़ता है, उनमें से कुछ कारण निम्नांकित हो सकते हैं;
1. नाम, यश / कीर्ति की आशा
२.व्यापारिक लाभ की आशा
3.अपने व्यक्तिगत जीवन में उत्थान की आशा
4.एक नए विशाल जनसमूह में पहचान बनाने की आशा
5.व्यक्तित्व विकास की आशा
6.सुरक्षा की आशा
7.राजनैतिक महत्त्वाकांक्षा
8.सामाजिक कार्यों में रूचि के अनुसार मंच मिलने की आशा
9.धन लाभ की आशा
इसके अलावा भी कुछ कारण हो सकते हैं, पर हैं सभी कुछ पाने की चाह के तहत ही॥ क्योंकि मेरा अनुभव रहा है की गुप्तदान भी अपने कुछ खास लोगों को मालूम हो इस तरीके से दिया जाता है।नेतृत्व को बस ये देखना चाहिये की किस व्यक्ति की कौन सी चाह महत्वपूर्ण है और उसे कैसे और किस स्तर तक पूरा किया जा सकता है। तभी उसका सम्पूर्ण लाभ मंच एवं समाज को मिलेगा।
-सुमित चमड़िया
... जारी...
मंच चर्चा....
वैसे सकारात्मक परिचर्चा के क्रम में कुछ महत्वपूर्ण बातें ध्यान में रखने की जरुरत है:-
१. नयी युवा पीढी का जुराव मंच से कैसे हो।
२. पुराने लोग जो मंच से जुड़े हैं उन्हें सही सम्मान प्राप्त हो।
३. पीढी अंतराल को कैसे भरा जाये, इस लम्बे कल खंड में संस्थापक, पुराने, पोषक और नविन नेत्रित्व के बीच कैसे सामंजस्य बैठाया जाये।
४. आज की परिस्थितियों के अनुसार जो मूल्यों में बदलाव आये हैं, क्या हम उस अनुसार चल पा रहे हैं।
५. नेत्रित्व विकाश / व्यक्ति विकाश की दिशा में हम कितना बढ़ पाए हैं।
आगे भी जारी.....
सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर, बिहार