अपने पूर्व के लेखों में कुछ महत्वपूर्ण बातें आपके समक्ष रखी हैं, जिन्हें आपकी सुविधा के लिए यहाँ एक जगह संकलित कर रहा हूँ :
क्या मारवाडी युवा मंच मारवाडी समाज के युवाओं की प्रतिनिधि संस्था है ...?
यदि हाँ, तो हमें अतिरिक्त जनसेवा कार्यक्रमों की क्या आवश्यकता है...?
और यदि नहीं... तो संगठन के स्वरुप पर पुनः विचार करना चाहिए। हमारे समाज के द्वारा असंगठित रूप से जितना जनसेवा कार्य किया जाता है वो शायद विश्व में अनूठा हो। पुरे भारतवर्ष में आप कही भी चले जाएँ, यदि किसी धर्मशाला में ठहरे हों, किसी प्याऊ में पानी पीने को हाथ बढाया हो, किसी ट्रस्ट की अस्पताल अथवा किसी धर्म स्थल में चले जाएँ संभव है की किसी न किसी मारवाडी के द्वारा संचालित होगी, फिर यदि बिनोद रिंगानिया जी के अनुसार 75% नेत्रदाता भी मारवाडी रहे है, इन स्थितियों में क्या और जनसेवा की आवश्यकता रह जाती है..., क्या इन कार्यक्रमों को एक संगठित रूप नहीं दिया जा सकता॥ क्यों नहीं हम नेतृत्व विकास, व्यक्तित्व विकास अथवा तो समाज विकास की ओर ज्यादा ध्यान देवें। ये बात सच है की जनसेवा के कार्यक्रम हमें एक त्वरित पहचान देते हैं पर हमें कालांतर में मिलने वाले पहचान को भी ध्यान में रखना चाहिए, वो जनसेवा की पहचान तो हमें पिछली पीढियों ने ही काफी दे दी है अब हम कुछ व्यक्तित्व विकास की राह पर चलें हमें जनसेवा को साध्य नहीं साधन बनाना चाहिए।
विगत कुछ वर्षों में मंच द्वारा कुछ ऐसे कार्य किये गए हैं जो एक नई उर्जा प्रर्दशित कर रहा है, हम समय के साथ चलना सिख रहे हैं, ये अब हमारे कार्यक्रमों में स्पष्ट रूप से झलकता है, फिर चाहे वो कार्यक्रम शाखा, प्रान्त या रास्ट्र स्तर पर ही क्यों न हो। इसका सबसे बढ़िया उदाहरण युवा विकाश के कार्यक्रम, शाखाओं-प्रान्तों द्वारा अपनी साईट का निर्माण, अपनी वैवाहिकी साईट, और फिर ये ब्लॉग जिसपे हमारे संस्थापक, पूर्व, अनुभवी और नवीन सदस्य समान रूप से लिख रहे हैं।ये एक शुभ संकेत है। आइये एक नए युग का स्वागत करें।
लक्ष्य अभी और ऊँचा है....
सदस्यों और समाज का जुड़ाव मंच से कैसे हो?पुराने सदस्य जुड़े रहें और नए जुड़ने को लालायीत हों, मैंने इस पर काफी विचार किया तो ये पाया है की व्यक्ति कुछ देने नहीं बल्कि कुछ पाने की आस में संगठन से जुड़ता है, उनमें से कुछ कारण निम्नांकित हो सकते हैं;
- नाम, यश / कीर्ति की आशा
- व्यापारिक लाभ की आशा
- अपने व्यक्तिगत जीवन में उत्थान की आशा
- एक नए विशाल जनसमूह में पहचान बनाने की आशा
- व्यक्तित्व विकास की आशा
- सुरक्षा की आशा
- राजनैतिक महत्त्वाकांक्षा
- सामाजिक कार्यों में रूचि के अनुसार मंच मिलने की आशा
- धन लाभ की आशा
इसके अलावा भी कुछ कारण हो सकते हैं, पर हैं सभी कुछ पाने की चाह के तहत ही; क्योंकि मेरा अनुभव रहा है की गुप्तदान भी अपने कुछ खास लोगों को मालूम हो इस तरीके से दिया जाता है।नेतृत्व को बस ये देखना चाहिये की किस व्यक्ति की कौन सी चाह महत्वपूर्ण है और उसे कैसे और किस स्तर तक पूरा किया जा सकता है। तभी उसका सम्पूर्ण लाभ मंच एवं समाज को मिलेगा।
कुछ बातें जिन्हें ध्यान रखना अवश्यक है....
- नयी युवा पीढी का जुराव मंच से कैसे हो।
- पुराने लोग जो मंच से जुड़े हैं उन्हें सही सम्मान प्राप्त हो।
- पीढी अंतराल को कैसे भरा जाये, इस लम्बे कल खंड में संस्थापक, पुराने, पोषक और नविन नेत्रित्व के बीच कैसे सामंजस्य बैठाया जाये।
आज की परिस्थितियों के अनुसार जो मूल्यों में बदलाव आये हैं, क्या हम उस अनुसार चल पा रहे हैं।
- नेत्रित्व विकाश / व्यक्ति विकाश की दिशा में हम कितना बढ़ पाए हैं।
समीक्षा का समय...
पिछले वर्षों में हमें क्या करना था, क्या कर पाए और क्या बाकि रह गया... जिसे अब अगली कार्यकारिणी को हस्तांतरित करना है, कुछ नए कार्यक्रम भी लेने हैं... वैसे मेरे विचार में मंच द्वारा विगत दिनों किये गए कुछ सराहनीय कार्य...
- कन्या भ्रूण संरक्षण कार्यक्रम (जागो माँ जागो);
- राष्ट्र एकता कार्यक्रम (मुंबई हो या पटना एक देश भारत अपना);
- राजस्थान में आये विपदा का मुकाबला;
- बिहार के जल प्रलय का चट्टानी सामना;
- संबल (कृत्रिम अंग प्रत्यारोपण)।
इनके अलावा भी बहुत सारे कार्यक्रम हैं जो मंच द्वारा नियमित तौर पर जारी हैं, और आगामी कमिटी को भी जारी रखने चाहिए।
कुछ बाकि (अधुरा) भी रहा है-
- संपर्क (मंच विस्तार योजना);
- कार्यशाला विस्तार (व्यक्तित्व विकाश हेतु)।
यहाँ भी और बहुत से ऐसे कार्यक्रम हैं जो होने तो चाहिए थे पर उनका सही क्रियान्वयन नहीं हो पाया है, और आगामी कमिटी को करना चाहिए।
कुछ नए विचार जो अगली कमिटी द्वारा लिया जा सकता है....
- मंच विद्यालय की शुरुआत - जहाँ अपने संस्कार नयी पीढी को दिए जा सकें, जहाँ हमारी कार्यशालाएं नियमित चल सकें, जहाँ हम कम्प्युटर की शिक्षा दे सकें और जहाँ हम ऊँचे नैतिक मूल्यों के बारे में पीढियों को बता सकें।
- विवाह सम्बन्धी जानकारी (सदस्यों सहित पुरे समाज की);
- रोजगार परक जानकारी (पुरे समाज के लिए)।
जब मंच का गठन हुआ था तब की परिस्थितियों और अब में बहुत फर्क है, फिर किसी भी दो पीढियों की मानसिकता भी अलग - अलग हो सकती हैं। क्या हमें अब अपनी प्राथमिकताएँ बदलनी होंगी ?
ठहरे हुआ पानी को गन्दा तालाब कहा जाता है, और बहता हुआ पानी मीठे और शीतल जल का श्रोत होता है...
लक्ष्य अभी और ऊँचा है....
विचार आमंत्रित हैं...
सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर
बिहार
मोबाइल - 9431238161
1 comment:
सुनो युवागण समझ लो, सेवा नहीं संघर्ष.
यही आज की माँग है,करो तीव्र संघर्ष.
करो तीव्र संघर्ष,तन्त्र को बदलो पूरा.
वरना निश्चित मानो,स्वप्न ना होगा पूरा.
कह साधक समय को समझे मारवाङी-गण.
सेवा नही संघर्ष जरुरी सुनो युवागण.
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